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मन बहुत उछल कूद करता है



मन बहुत उछल कूद करता है

हार और जीत की है ये जिंदगी
भाग और दौड़ की है ये जिंदगी
पर मन करता है पंछी बनकर
अंबर से तारे ले आऊं
चुन चुनकर खूबसूरत लम्हें
मन बहुत उछल कूद करता है।
प्रातः काल की मधुर बेला में
पंक्षी चीं ची करते है
इस मनोरम दृश्य को देखकर
मन करता है मैं भी सुंदर गीत सुनाऊं
तरह तरह के खिले हुए पुष्प को देख
मन बहुत उछल कूद करता है।
याद आता है हमें
बचपन का वो दिन
जब हम रेत का महल बनाते थे
और मन हमें स्वर्ग का एहसास कराता था
धूप और छांव के संग संग
मन बहुत उछल कूद करता है।
कहने और समझने के
कई कोण होते है सज्जनों
हारा मन तो हो जाती है हार
जीता मन तो जीवन में आ जाती है बहार
मनवांछित फल प्राप्त होने पर
मन बहुत उछल कूद करता है।

नूतन लाल साहू





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1 Comments

Gunjan Kamal

03-Dec-2023 06:36 PM

👏

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